“सुनूँ क्या सिंधु मैं गर्जन तुम्हारा, स्वयं युगधर्म का हुँकार हूँ मैं...
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का, प्रलय गांडीव की टंकार हूँ मैं..
दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की, दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं....
सजग संसार, तू जग को संभाले,व प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं..”